chand ka anchal
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किताबो में रक्खी कलियों से फूल निकल आये है,
धूल ने दीवारो पर देखो तन्हाई के स्केच बनाये है,
एक अरसा हुआ तुम आये नहीं,
वक्त निकाल के आना इस बार,
मेने आम के पेड़ पे फिर से झूले लगाये है।
उस दिन किसी बात पे तुम नाराज हुए थे,
कितना पुकारा था मैने, पर तुम चल दिए थे।
इस आँगन में आज भी तुम्हारी बाते हुआ करती है,
घंटो बैठ के इन फूलो को मैने तुम्हारे किस्से सुनाये है।
एक कली फेंकी थी तुमने तोड़ के उस दिन,
उसमें से अब फूल निकल आये है।
WRITTEN BY- RAHUL UNIYAL
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