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पिताजी जिस दवाई की दुकान मे काम करते थे उसी के मालिक की कोठी में हमे रहने को एक कमरा मिला था। उस कोठी के आँगन मे आम के दो पेड हुआ करते थे। उन पेड़ो पे घिलेहरियो के परिवार भी रहते थे। सारा दिन वो गिलेहरी एक पेड से दूसरे पेड पर उछल कूद करती थी। हम कुछ समय पहले ही गाँव से शहर आए थे इस कारण हमे हिंदी बोलनी नहीं आती थी तो किसी स्कूल ने हमे दाखिला नहीं मिला कहते थे की पहले हिंदी सीख के आओ फिर ही हम कुछ सीखा पायेगे। अब घर पर हम अकेले सारा दिन घिलेहरियो के पीछे भागा करते थे।
एक बार हमारे बड़े भाई ने हमे पेड पर रस्सी डाल के उस पर घीट मार कर झूला डालना सीखा दिया। अब हम उसपर रोज झूला करते थे, वह हमारे जीवन का पहला खिलोना थ। जब हम थोड़ा बड़े हुए और हिंदी भी बोलने लगे और स्कूल भी जाने लगे तो पतंग उड़ाने में बड़ा आनंद आता था। एक बार की बात है, पिताजी काम पर गए थे और हम घर पर माँ के साथ अकेले थे, एक पतंग आकर आम के पेड़ पर फस गयी. हमने मन बना लिया की अब तो इसी पतंग को उड़ायेंगे, पर समस्या ये थी की पेड़ पर चढ़ना नहीं आता। जैसे तैसे करके हम पेड़ पर चढ़ गए और पतंग को निकल लिया।अभी समस्या हल हुई ही थी की दूसरी आ खड़ी हुई। अब पेड़ पर से उतरा कैसे जाए। कुछ देर हाथ पैर हिलाये मगर कुछ समज न आया की क्या करे। अभी दिन का समय था तो कोई आस पास दिख भी न रहा था हो गयी तो हम दर भी गए। वहीं बैठे-बैठे हम रोने लगे। कुछ देर बाद माँ रोना सुन कर बाहर आ गयी। पहले तो माँ ने वहीं खड़े खड़े दस बाते सुनाई और फिर रोने लगी। हमारा भी रो-रो बुरा हाल था। बड़े भाई आया तो उसकी भी कोशिश बेकार रही। फिर पिताजी को संदेश भिजवाया गया और कुछ देर बाद पिताजी भी वहाँ पहुंच गए। पिताजी ने अपना जीवन गाँव में बिताया था तो उन्हें पेड़ पर चढ़ने में कठनाई नहीं हुई। हमारे पास पहुँच कर पहले तो पिताजी ने पतंग फाड़ के फेंकी और फिर हमारे कान गरम किए तब कही जाके हमे नीचे उतारा गया। नीचे उतर कर पिताजी ने चप्पल से हमारी खूब धुनाई की। ये किस्सा हम कभी नहीं भूल सकते, पिताजी के अनुरोध पर वो दोनों पेड़ कटवा दिए गए थे
कभी गिलहरी देखता हु तो वो आम का पेड़ याद आजाता है। अब मेरे बच्चो को झूला बाँधना नहीं आता और न ही उन्हें पेड़ पर फसी पतंग उतारने का शौक है।
छोटी-छोटी खुशियाँ पेड़ो के साथ कट जाती है
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