chand ka anchal
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ये दिन वही है,
लोग वही है,
बस सोच बदलती नहीं है।
लोग दिवार सजा देते है,
दरवाजे दिखते नहीं है,
पेड़ वही है,
पंछियो के गीत वही है,
बस लोगो पे फुर्सत नहीं है,
ये लोग वही है।
गणतंत्र मना रहे है,
गणतंत्र को समझा नहीं है।
आजाद हुए बरसो हुए,
गुलामी मगर जाती नहीं है।
सत्ता के पीछे भागते,
ये लोग वही है।
written by RAHUL UNIYAL
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