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सुबह-सुबह

chand ka anchal
chand ka anchal
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सुबह सुबह चिड़िया चहचहाती थी,
दीवारो पर लैपी हुई मीठी की खुसबू आती थी,
याद है बचपन में एक आवाज लगाते थे हम,
जो दूर वादियों से टकराती थी और लौट आती थी,
एक खेल खेला करते थे हम,
जिसमे कभी तुम जीत जाते तो कभी हम हार जाते थे
उस हार में हमारी जब तुम्हारी आँखे मुस्कुराती थी,
इन अनजान रास्तो को देख के लगता है,
वो गलियाँ ही अच्छी थी,
जो गिरकर उठना सिखाती थी,
अब वक़्त कहाँ की उन गलियो में जाए,
फुर्सत से बैठ के मीटी के घरोंदे बनाये,
अरसा हो गया जब चिड़िया चहचहाती थी,
एक वक्त वो भी था जब दीवारो से मीटी की खुसबू आती थी,
written by- RAHUL UNIYAL

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